मानव जीवन में सदाचार का स्थान बहुत ऊँचा है। सब कुछ है, लेकिन आचरण अच्छा नहीं, तो मुनष्य की कीमत शून्य हो जाती है। यह सदाचार का गुण ही है जो मुनष्य को देव बनाता है। महाभारत में भी कहा गया है –

 

आचारा भूतिजनन आचारः कीर्तिवर्धनः।
आचाराद्‌ वर्धते ह्‌यायुचारो हन्त्यलक्षणम्‌॥

 

(सदाचार कल्याण-वर्धक और कीर्तिवर्धक है। सदाचार आयु को बढ़ाता है तथा बुरे लक्षणों को नष्ट करता है)

 

सदाचार से समाज का उत्थान होता है और अनाचार से पतन। सदाचार से ही लोग आकर्षित होते हैं। सदाचार का ही आदर सब करते हैं, दुराचार का सर्वत्र अनादर होता है। उत्तम आचरण की प्रशंसा होती है, दुराचार से अपकीर्ति। सम्पूर्ण सदाचार का पालन मानवीय दुर्बलताओं के कारण कठिन होने पर भी हमारा लक्ष्य सदाचार का वातावरण सर्वत्र बने यहीं है। व्यक्ति-व्यक्ति को सदाचारी बनाना और सदाचारी व्यक्तियों को संगठित करना यहीं सामाजिक उद्धार का मूल मंत्र है।

 

सेवा, त्याग, सदाचार का उदघोषाक हमारा यह बोधचिन्ह सचमुच बड़ा अथर्पूर्ण है। हमारे इस अलौकिक बोधचिन्ह का प्रचार”प्रसार हमें जितना हो उतना अधिकाधिक करना चाहिए। महासभा का यह पथप्रदर्शक, प्रेरक गौरवाशाली चिन्ह है। हर माहेश्वरी व्यक्ति की तथा संस्था की यह पहचान बने, ऎसी हमारी भावना है। जहाँ”जहाँ हो सके इसे छपाईए। घर में, दुकान में सर्वत्र् लगाईए। हर उत्सव में हर कार्यक्रम में इससे प्रेरणा लीजिए।